बंगाल में TMC के 29 सांसदों में से 11 महिला सांसद हैं, जो कुल संख्या का लगभग 40% है। TMC प्रमुख ममता बनर्जी ने एक रिकॉर्ड तय किया है ये देश के लिए एक उम्मीद है। - जितेंद्र चौरसिया
इस चित्र में पहली पंक्ति में खड़ी सभी TMC की महिला सांसद हैं। पुरुष सांसदों का पीछे की पंक्तियों में रहना इस तस्वीर को और विलक्षित कर देता है।
भारत की 18वीं लोकसभा में 74 महिलाएं ही सांसद चुनी गई हैं। यदि संसद में ३३% सीट महिलाओं के लिए आरक्षित होता तो ये संख्या 180 के क़रीब होती। 2019 के लोकसभा चुनाव में महिला सांसदों की संख्या 78 थी जो की अभी तक की भारतीय संसद में सर्वाधिक लगभग 14% था। इस बार चुनी गई महिला प्रतिनिधि नई संसद का केवल 13.63 फीसदी हिस्सा हैं। 2024 के लोकसभा चुनावों में कुल 8,360 उम्मीदवार मैदान में थे, हालांकि, प्रत्याशियों की इस विशाल संख्या में महिलाओं की कुल हिस्सेदारी सिर्फ 10 फीसदी ही रही। लोकसभा की 543 सीटों पर केवल 797 महिला प्रत्याशियों ने ही इस बार चुनाव लड़ा। 2019 के लोकसभा चुनावों में 726 महिला उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा, लेकिन तब 78 महिलाएँ जीतकर संसद पहुंची थीं। 2014 में 640 महिला उम्मीदवार थीं और इनमें से 62 महिलाएं सांसद बनीं। 2009 के चुनावों में 556 महिला उम्मीदवार मैदान में थीं, जिनमें से 58 महिलाएं संसद पहुंचीं। चुनकर संसद तक पहुंचने का सफर बेहद कम महिलाएं ही तय कर पाती हैं। महिला सांसदों की घटती संख्या के पीछे सबसे बड़ी चुनौती उनकी कम उम्मीदवारी है। या तथ्य पुष्ट करता है की महिलाओं की भागीदारी के लिए भारतीय संसद में महिला आरक्षण लागू किया जाना चाहिए। लेकिन ममता बनर्जी बिना किसी आरक्षण के देश की संसद और राजनीति के लिए एक आदर्श तय कर रहीं हैं। TMC की महिला सांसद अन्य दलों की महिला संसदों से अधिक शिक्षित हैं एवं राजनैतिक फ़ैसले लेने के लिए अपने पति या किसी अन्य पुरुष पर निर्भर नहीं हैं।
देश की अधिकतर बड़ी पार्टियों ने भी महिलाओं को टिकट देने में उतनी उदारता नहीं दिखाई जितनी TMC ने दिखाई है। सर्वाधिक सीट अर्जित करने वाली बीजेपी ने मात्र 69 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया। वहीं दूसरी सबसे बड़ी पार्टी, कांग्रेस ने 41 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने 37 और सपा ने 14 सीटों पर महिला उम्मीदवारों को उतारा। पश्चिम बंगाल में TMC ने 12 सीट में हिलाओं को टिकट दिया था। यानी लगभग सत प्रतिशत महिलाएँ विजयी हुई हैं। देश के सबसे पहले चुनाव, 1952, में मात्र 4% महिला सांसद थीं, आज ये लगभग 14% हैं, मध्यम ही सही, महिलाओं के प्रतिनिधित्व के मामले में देश को गतिमान कहा जा सकता है। लेकिन यदि हम बंगाल की 11 सांसदों को हटा दें तो कई राज्य जैसे बिहार, राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों से महिलाओं का प्रतिनिधित्व न के बराबर है और है भी तो उनके पास स्वयं फ़ैसले लेने की शक्ति नगण्य है।
दिल्ली, उत्तर प्रदेश, गुजरात एवं तमिलनाडु में भी पश्चिम बंगाल की तरह महिला मुख्यमंत्री रहीं हैं लेकिन ममता बनर्जी की तरह महिलाओं के राजनैतिक नेतृत्व विकास में भारतीय राजनीति में आज तक किसी अन्य नेता का विशेष योगदान नहीं रहा है। अतिशयोक्ति होगी लेकिन कहना चाहिए, की ममता बनर्जी २१वीं सदी की रजिया सुल्तान हैं।
जितेंद्र चौरसिया (x पर @Jitendrajaihind)
-लेखक आम आदमी पार्टी मध्यप्रदेश के प्रदेश सचिव हैं। ये उनके निजी विचार हैं।
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