जिस घर की बात करें उसमे कोई न कोई बीमार हुआ है या नहीं रहा है । और इन सभी परिस्थितियों का जिम्मेदार जितना एक आम इंसान की लापरवाही है उससे कही ज़ादा सरकार की ढिलाई है। और ढिलाई का आलम कुछ इस तरह रहा है की सरकर के पास, स्वयं मोदी जी के पास लोगों का ढाँढ़स बांधने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा।
उनके भाषण समाधान केंद्रित न होकर प्रेरणा केंद्रित हो गए।
सरकार इस लापरवाही की जिम्मेदार है क्योंकि जो समय, पैसा और प्रयास उन्होंने अपनी छाप बनाने में लगाया अगर इतना ही ध्यान आज हमारे स्वास्थ्य, शिक्षा छेत्र में लगाया होता तो आज सर देश शायद मोदी के समर्थन में खाद्य होता और हर चीज में सर दोष विपसक्ष पर मढ़ने की स्थिति न आती ।
लोगों को भावनात्मक ठेस पहुंची है, और इस समय मोदी सरकार द्वारा लिया गया हर कदम जो उनकी छाप बनाने की ओर इशारा देता है, इसने लोगों को आक्रोश से भर दिया है, आज का नागरिक लल्लू नहीं है वह अच्छे बुरे का भेद जानता है, अपने हक के लिए लड़ना जानता है, और सरकार से बगावत करना भी जानता है। सोशल मीडिया अपनी बात रखने के लिए आज एक बहुत ही शक्तिशाली माध्यम है। उसी का इस्तेमाल कर लोगों ने सरकार से लगी उम्मीदें छोड़ कर, कोविड-19 जैसी महामारी में अपनों की मदद के लिए हाथ बढ़ाया, जिसमे रेंदेसीवीर, आक्सिजन सप्लाइ, सिलिन्डर व कॉन्सेंटरेटर; फबिफलु, प्लासमा, और संबंधित काफी दवाइयों का अथवा अस्पताल बेड तक की व्यवस्था का इंतजाम सोशल मीडिया के मध्याम से लोगों ने किया।
अपनों को खोने का दुख अथवा ऐसी महामारी के बीच इलाज का महंगा होना, दवाओं का महंगा होना, बेड न मिलना, स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की दुर्बलता को, और काला बाजारी को दर्शाता है। साथ ही साथ इस सब परिसतिथियों ने मानव के दिमाग पर जो गहरे घाव छोड़ें हैं, उसका तो जिक्र ही नहीं है।
और ये सब होते हुए भी नरेंद्र मोदी का एक तरफ ये कहना की कोविड -19 एक मानवीय मुद्दा है और साथ ही साथ इतने अनभिज्ञ बयान देना की आक्सिजन सप्लाइ की वजह से कोई जान नहीं गई, अति संवेदनशील है।
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